उद्देश्य

भारत संस्कृति न्यास

राष्ट्रीय सांस्कृतिक एजेण्डा

‘भारत संस्कृति न्यास देश की सरकार से यह अपेक्षा करता है कि वह शीघ्रातिशीघ्र भारत का राष्ट्रीय सांस्कृतिक एजेण्डा सामने ले आए। यह विडम्बना है कि भारत वर्श को आजाद हुए इतने वर्षों के बाद भी देश में न तो कोई सांस्कृतिक नीति बनी है और न ही इसका कोई एजेण्डा है। सरकारें देश के विकास की बात तो करती हैं लेकिन वे भूल जाती हैं कि बिना संस्कृति विकास के किसी भी देश और समाज का विकास संभव नहीं है। ईंटों और कंकरीट के जंगलों को उगा देने भर से कोई देश विकसित नहीं हो सकता। विकास के लिए राष्ट्र के समाज का सभ्य होना भी उतना ही जरूरी है। सभ्यता के विकास के लिए संस्कृति का गहरा और आधारवान होना महत्वपूर्ण है। हमारे देश की हजारों वर्ष पुरानी सांस्कृतिक विरासत मौजूद तो है लेकिन हमने अभी तक ऐसा कोई ठोस प्रयास नहीं किया है जिससे हमारी पीढ़ियों को अपनी विरासत से जुड़ने का मौका मिल सकता है। हम अर्थात् भारत संस्कृति न्यास का प्रयास है कि भारत वर्ष के लिए एक व्यापक सांस्कृतिक एजेण्डे को तैयार किया जाए इसके लिए सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर जो भी प्रयास संभव हों उनमें लगकर इस कार्य को अति शीघ्र पूरा किया जाए ताकि आने वाली पीढ़ियां अपनी महान सांस्कृतिक विरासत से जुड़ सकें। यह भी सत्य है कि विज्ञान और विकास के इस युग में यदि राष्ट्र अपना सांस्कृतिक एजेण्डा स्पष्ट कर अपने समाज को संस्कृति की प्राण वायु से अभिसिंचित करता है तो जाहिर है कि राष्ट्र की उन्नति संभव हो सकेगी। किसी भी राष्ट्र को संस्कारित समाज देने की जिम्मेदारी संस्कृति की ही होती है। भारत जैसे विविधता वाले देश में क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर बहुस्तरीय सभ्यताऐं मौजूद हैं इन सभी के विकास और शोधन का दायित्व संस्कृति का ही है। ऐसे में राष्ट्र का सांस्कृतिक एजेण्डा स्पष्ट होना अत्यंत आवश्यक है।

राष्ट्रीय संस्कृति आयोग

देश में अब तक की सरकारों ने कला, साहित्य, संस्कृति, कानून, शिक्षा और समाज के अन्य क्रियाकलापों के लिए विभिन्न आयोगों का गठन तो किया लेकिन किसी सरकार को यह चिन्ता नहीं हुई कि संस्कृति जैसे व्यापक विषय को दृष्टिगत रखते हुए एक राष्ट्रीय संस्कृति आयोग बनाया जाए। आज हालत यह है कि संस्कृति के नाम पर स्कूलों, कालेजों और समाज के अन्य संस्थानों में सिर्फ नृत्य, संगीत और गाने-बजाने को मान लिया गया है। संस्कृति की व्यापक अर्थवत्ता कहीं बहुत दूर छूट गई है। हालत यह है कि जब कोई विद्यालय अपनी प्रतियोगी परिक्षाओं में अपने बच्चों से सवाल पूछता है कि रामायण का लेखक कौन है तो अधिकांश बच्चे उत्तर में रामानन्द सागर लिखते हैं ऐसा अभी हाल ही में एक प्रतिष्ठित बोर्ड की प्रतियोगिता में हुआ भी है। विडम्बना है कि रामायण, रामचरित्र मानस ही नहीं बल्कि किसी भी प्राचीन भारतीय वाङमय अथवा उपाख्यान अथवा आख्यान अथवा अपनी विरासत की सटीक जानकारी देने की कोई व्यवस्था बनी नहीं है। ऐसे में किसी भी त्रुटि के लिए हम वर्तमान पीढ़ी को दोषी नहीं मान सकते। आवश्यक है कि छोटे-मोटे आयोगों से इतर देश में एक व्यापक सोच और दिशा वाला राष्ट्रीय संस्कृति आयोग स्थापित होना चाहिए। भारत संस्कृति न्यास इसके लिए प्रयत्नशील है।

राष्ट्रीय संस्कृति विश्वविद्यालय

भारत में इस समय विभिन्न विष्वविद्यालयों की स्थापना का क्रम चल रहा है। सरकारों ने पारम्परिक विश्वविद्यालयों के अलावा तकनीकी, मेडिकल, स्पोर्टस् आदि विश्वविद्यालय स्थापित करने की दिशा में अनेक कदम उठाये हैं। यहाँ तक कि कई प्रकार के डीम्ड विश्वविद्यालय भी स्थापित किए गए हैं। ऐसे में भारत संस्कृति न्यास सरकार से यह अपेक्षा करता है कि देश में राष्ट्रीय संस्कृति विश्वविद्यालय स्थापित किए जाने चाहिए। इसकी शुरूआत सबसे पहले वाराणसी, प्रयाग अथवा अयोध्या जैसे प्राचीन स्थलों से होना चाहिए।

अनिवार्य संस्कृति शिक्षा

देश में प्राथमिक से लगायत उच्च शिक्षा तक के पाठ्यक्रमों में संस्कृति शिक्षा को अनिवार्य बनाए जाने के लिए भारत संस्कृति न्यास संकल्पब( है। न्यास की कोशिश है कि सभी राष्ट्रीय और राज्य शिक्षा बोर्डों के पाठ्यक्रमों में संस्कृति शिक्षा को अनिवार्य रूप से स्वतंत्र विषय के रूप में शामिल किया जाए। इसके लिए पाठ्यक्रमों की तैयारी इस प्रकार की जाए ताकि आने वाली पीढ़ियाँ अपने महान अतीत से और विरासत से सीधे जुड़ सकें तभी हम गौरवशाली भारत का निर्माण कर सकते हैं। इन सबके अलावा भारत संस्कृति न्यास देष की सम्पूर्ण सांस्कृतिक विरासत और समस्त क्षेत्रीय भाषाओं को दृष्टिगत रखते हुए उनके विकास, संरक्षण, संवर्धन और संविकास के लिए प्रयास करेगा। न्यास की अभिलाषा है कि भारत की क्षेत्रीय अथवा राष्ट्रीय समस्त सभ्यताओं, संस्कृतियों और भाषाओं को विकसित होने तथा पुष्पित, पल्लवित होने का स्वतंत्र अवसर प्राप्त हो सके। मानव जीवन और उसकी क्षेत्रीयता से उसके सांस्कृतिक संबंधों, सभ्यताओं की अनुकृतियों और जीवन की आवश्यकताओं से समन्वय बनाकर इस कार्य को आगे बढ़ाना न्यास का लक्ष्य है।

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