यह अत्यंत गर्व का विषय है कि विश्व भोजपुरी सम्मेलन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष संजय तिवारी की पुस्तक सृष्टिपर्व कुम्भ और उनके द्वारा संपादित पत्रिका संस्कृति पर्व के विशेषांक चतुष्पदी शक्ति अंक, ज्योति अंक, संस्कार अंक और कुम्भ अंक का विमोचन प्रयागराज कुम्भ में श्रीगंगामहासभा के मंच से पूज्यपाद शंकराचार्य भगवान श्री वासुदेवानंद जी महाराज एवं रामानंदाचार्य हंसदेवाचार्य जी के कर कमलों से संस्कृति संसद के पावन आयोजन में सम्पन्न हुआ। 23, 24 और 25 जनवरी को आयोजित संस्कृति संसद में वक्ताओं ने सृष्टिपर्व कुम्भ को अब तक की प्रकाशित पुस्तको में सर्वश्रेष्ठ बताया। इस अवसर पर पत्रिका संस्कृति पर्व के चारो विशेषांकों पर विशेष विमर्श हुआ ।वक्ताओं ने संस्कृतिपर्व को गीताप्रेस के कल्याण के बाद सर्वाधिक व्यवस्थित पत्रिका बताया जिसको नई पीढ़ी सहजता से स्वीकार करेगी। इस विमोचन के अवसर पर दोनों शंकराचार्य के अलावा अखिल भारतीय संत समिति और गंगा महासभा के मंत्री स्वामी जीतेंद्रनंद जी , न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय जी और बाबा योगेंद्र जी की उपस्थिति विशेष रही। सृष्टिपर्व कुम्भ पुस्तक तथा संस्कृति पर्व पत्रिका के सभी अंक युवसंस्कृति संसद में श्री राम माधव जी को भेंट किये गए। अब इन सभी ग्रंथो के लोकार्पण का क्रम शुरू हो रहा है। लोकार्पण का प्रथम मंच महामंडलेश्वर अवधेशानंद जी महाराज एवं बाबा रामदेव का है । यहां 31 जनवरी को शाम 6 बजे लोकार्पण की तिथि निर्धारित है।
पुस्तक सृष्टि पर्व कुंभ प्रकाशन
वर्षों की प्रतीक्षा के बाद मेरी पुस्तक सृष्टि पर्व कुंभ प्रकाशन में जा चुकी है। यह पुस्तक मकर संक्रांति को अनामिका प्रकाशन , प्रयागराज से प्रकाशित होकर आ रही है।
भारत संस्कृति न्यास की पत्रिका संस्कृतिपर्व के प्रस्तावित चार विशेषांकों - शक्ति, ज्योति, संस्कार और कुम्भ अंक का प्रथम सोपान। संस्कृतिपर्व- शक्ति अंक शारदीय नवरात्र की पंचमी तक देश भर में उपलब्ध होगा
कुम्भ के बहाने
कुम्भ।यानि सभ्यता की समीक्षा। सनातन पर विमर्श। समाज की चेतना में बदलाव का विश्लेषण। धर्मयात्रा की दृष्टिगत त्रुटियों में संशोधन। सुधार। यदि कोई संकट आसन्न है तो उसका निदान। राजनीति की शुचिता और जनता के सरोकारों पर चिंतन। सनातन जीवन संस्कृति को विशुद्ध बनाये रखने और सभ्यता के साथ सामंजस्य की तलाश। भारत की एकता , अखण्डता और प्रभुसत्ता पर व्यापक मंथन।
जी हां। कुम्भ के यही निहितार्थ होता है। इसीलिए कुम्भ जैसे आयोजन की प्रतीक्षा रहती है। जो आस्था और सनातन विशवास के प्रश्न हैं उनको मिल बैठ कर हल कर लिया जाय। क्योकि यही वह समागम है जब सभी जिम्मेदार एक विन्दु पर मिलते हैं और विमर्श का भरपूर समय होता है। समाज के सञ्चालन की बाधाओं से मुक्ति। राजनीती की विसंगतियों का समाधान। आस्था के प्रश्नो का स्थायी शांतिपूर्ण समाधान। इन्ही के लिए भगवान् शंकराचार्य ने व्यवस्थाएं दी। अब यह कितना सार्थक और सक्षम बचा है यह भी विमर्श में होना चाहिए।
यह लिखना इसलिए पड़ रहा है क्योकि किसी सबरीमाला या श्रीरामजन्मभूमि के प्रश्न का हल कोई अदालत कैसे कर सकती है। और यदि ऐसी परशान अदालत में ही हल होंगे तो फिर समूची सनातन थाती , तीन ाड़ियाँ , तेरह अखाड़े , १४७ सम्रदायो के संचालको के भी शीर्ष पर स्थापित शंकराचार्य परंपरा किस लिए है ? सनातन को सही दिशा देने शंकर ने जो व्यवस्था दी है , क्या वह इतनी दुर्बल हो चुकी है कि वह में केवल अपने शिविर लगा कर अपना दायत्व ख़त्म कर दे और सबरीमाला या की जन्मस्थली का निर्णय अदालते करती रहें ? तो ऐसे ही समय पर उभरने वाले ज्वलंत प्रश्नो मंच है? फिर यह अदालती हस्तक्षेप किस लिए ? किसके कहने पर ? किसके हक़ के लिए ?
यह संदेह इसलिए उत्पन्न हो रहा है क्योकि कुछ इसी तरह की स्थितियां तब भी रही होंगी जब सोमनाथ मंदिर में , इतिहास की लिखित पुस्तकों के अनुसार , जिस समय महमूद गजनी ने हमला किया उस समय लगभग पचास हजार दर्शनार्थी मौजूद थे। आस्थावान पचास हजार लोगो पर कुछ मुट्ठी भर आक्रांता भारी पड़े। अब यह आस्था और समर्पण कैसा रहा होगा इस पर भी कभी विचार कर लिया जायेगा। आज यह सब इसलिए लिखना पड़ रहा है क्योकि विगत वर्षों में सनातन पर बहुत ही संगीन हमले हुए हैं। क़ानून के नाम पर भारत में दुष्कर्म को वैधता प्रदान कर दी गयी। किसी अन्य मजहब या पंथ की किसी बदलाव करने का साहस कोई नहीं करता लेकिन सनातन के ताने बाने को बड़े ही सलीके से काटा जा रहा है। कुम्भ में सनातन के जिम्मेदारों और ध्वजवाहकों से इस पर भी प्रश्न पूछे जाने चाहिए।